आम चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं और इस बार चुनावी महाभारत का कुरुक्षेत्र गोड्डा बनता दिख रहा है। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व संथाल परगना की इस सीट के माध्यम से अगल-बगल की सीटों पर नजर गड़ाए हुए है वहीं विपक्षी दलों का महागठबंधन भी अपनी-अपनी तैयारियों में जुटे हुए हैं। महागठबंधन की गांठ इसी क्षेत्र में बनी हुई है। झारखंड विकास मोर्चा इस सीट से प्रदीप यादव को लड़ाना चाहता है तो कांग्रेस के पूर्व सांसद फुरकान अंसारी दावेदारी वापस लेने को तैयार नहीं हैं। माहौल धीरे-धीरे गरमाने लगा है।
दरअसल लड़ाई भले ही गोड्डा की दिख रही हो, यहां से कई सीटें और साधने की फिराक में राजनीतिक दल लगे हुए हैं। पूरे झारखंड में इसी इलाके की दो सीटें दुमका और राजमहल जीतने में झामुमो सफल रहा है। विपक्षी पार्टियों की नजर तीसरी सीट गोड्डा पर है और सभी मिलकर इस चुनाव में जीत सुनिश्चित करना चाहते हैं। दूसरी ओर, गोड्डा में काम के बहाने भाजपा नजदीक की सीटों को प्रभावित करने की कोशिश में है।
गोड्डा संसदीय क्षेत्र में एम्स, एयरपोर्ट, स्पेशल इकोनॉमिक जोन, कई कंपनियों के दफ्तर खुलवाकर सांसद और भाजपा अपने किले को मजबूत कर आगे बढ़ रहे हैं। स्वयं रघुवर दास भी कई दिनों तक दुमका में कैंप कर पार्टी को मजबूत करने में दिखे और कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद किया। एक बार फिर चुनावी शंखनाद करने गोड्डा पहुंचे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि इस चुनावी महाभारत के कुरुक्षेत्र में पार्टी पूरी ताकत लगाएगी।
दूसरी ओर, कांग्रेस और झाविमो एक-दूसरे स उलझकर गठबंधन की टूट को भी तैयार दिख रह हैं। कुछ लोग दोनों को ताकत आजमाने की छूट देना चाहते हैं तो एक वर्ग से यह संकेत भी मिल रहा है कि एक सीट के लिए कांग्रेस गठबंधन नहीं तोड़ेगी। फैसला जो भी हो, चुनावी कुरुक्षेत्र पर नजर सभी की टिकी हुई है।
लोकसभा चुनाव की तमाम तैयारियों के बीच अब तक जल-जंगल और जमीन लूटने को लेकर झारखंड की सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ मुखर हो रही विपक्षी पार्टियाें का महागठबंधन अस्तित्व में नहीं आने से राजनीतिक दलों और उनके कार्यकर्ताओं में उहापाेह की स्थिति है। राज्य में लगातार बनते हुए चुनावी माहौल पर नजर डालें तो एक तरफ जहां भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को मैदान में उतारकर चुनावी शंखनाद कर चुकी है। वहीं मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की ओर से बीते दिन अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के जरिये चुनावी बिगुल फूंका है।
हालांकि भाजपा के खिलाफ वोटों का बिखराव रोकने के लिए जिस शिद्दत से विपक्षी महागठबंधन की दरकार राजनीतिक दलों ने बताई, वह अब तक हवा में ही लटकी है। झारखंड की 14 सीटों के लिहाज से कोई कम पर समझौता करने को तैयार नहीं दिख रहा। सबका अपना जनाधार, अपने-अपने दावे। प्रदेश कांग्रेस में नेताओं की बड़ी फौज टिकट की आस लगाए बैठी है लेकिन महागठबंधन की अगुआई के कारण सीटें कम पड़ रही हैं। प्रदेश में कमजोर संगठन और कैडर कार्यकर्ताओं की कमी से जूझ रही कांग्रेस में संगठन के कार्यों से भले ही सीनियर नेता दूर हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव में जोर-आजमाइश की मंशा पूरे शबाब पर है।
गोड्डा समेत जिन सीटों को लेकर कांग्रेस, झाविमो, राजद और वामपंथी पार्टियों के बीच दूरी बनी हुई है, उन पर पहल की बात तो सभी कर रहे हैं, लेकिन सभी पहले आप-पहले आप के पुराने और विश्वसनीय फार्मूले पर ही भरोसा कर रहे हैं। हर पार्टी और कार्यकर्ता की अधिक से अधिक सीटों पर लडऩे की चाहत परवान पर है। ऐसे में सीट विशेष पर एक से अधिक मजबूत उम्मीदवारों की दावेदारी यहां आने वाले चुनावों में महागठबंधन के दलों के बीच फ्रेंडली फाइट की ओर भी इशारा कर रहा है।
चुनावी प्रक्रिया में हर पार्टी खुद को दमदार साबित करने में तो जरूर लगी है, लेकिन कोई खुलकर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। जेल से बाहर निकलने की जल्दी में दिख रहे रांची के रिम्स में इलाजरत चारा घोटाले के सजायाफ्ता लालू प्रसाद यादव की राजद हो, चाहे वामपंथी पार्टियां। भले ही इनकी स्थिति दरकिनार जैसी हो, लेकिन वे अब भी धैर्य धर कर बैठे हैं। इस बीच प्रदेश के राजनीतिक गलियारे चर्चा यह भी हो रही है कि गोड्डा, हजारीबाग, जमशेदपुर सीट बंटवारे में जिधर जाए, यहां आजमाइश पक्की होगी। चुनाव में यहां कई बागियों के चेहरे भी दिख सकते हैं। राहुल की रैली से किनारे कर दी गईं वामपंथी पार्टियां अपने जनाधार का हवाला देकर कई सीटों पर दांव आजमाने की जुगत में हैं।